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मानवाधिकार आयोग नींद में?

पीपुल्स वॉच द्वारा हाल में प्रकाशित सैबिन नायरहॉफ की पुस्तक 'फ्रॉम होप टू डिस्पेयर' यानी आशा से निराशा में निष्कर्ष निकाला गया है कि राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग भारत में मानव अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों पर कार्रवाई करने में बुरी तरह असफल रहा है। निष्कर्ष के मुख्य अंश :

पीपुल्स वॉच के अध्ययन के निष्कर्ष राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के लिए काफी हद तक घातक हैं। विश्लेषण के किसी भी श्रेणी के परिणाम अनुकूल नहीं हैं।

कुल प्राप्त शिकायतों में से एक तिहाई से अधिक में आयोग ने शिकायतकर्ता को कोई जवाब नहीं दिया, इतना ही नहीं आयोग ने शिकायतकर्ता को यह बताने का कष्ट भी नहीं किया कि उसकी शिकायत मिल गई है या उस पर विचार किया जा रहा है।
जिन मामलों में कोई प्रारम्भिक जवाब नहीं मिला उनमें शिकायतकर्ता औसतन दो से अधिक वर्ष से जवाब की प्रतीक्षा में हैं।

उन मामलों में जिनमें जवाब भेजा गया है उनमें से लगभग आधों में शिकायतकर्ता या पीड़ित का विवरण शामिल नहीं किया गया हालांकि पीपुल वॉच ऐसा करने का बार-बार अनुरोध करता रहा है। उसका मानना है कि ऐसा करने से उन एनजीओ का काम आसान हो जाएगा जो आयोग में एक साथ कई शिकायतें प्रस्तुत करते हैं।
लगभग 50 प्रतिशत शिकायतों में आयोग के पास चार या पांच स्मरण पत्र भेजने पड़ते हैं क्योंकि आयोग न तो कोई सूचना भेजता है और न पत्र। स्मरण पत्र भेजने में अनावश्यक समय और धन लगता है।

शिकायतों की औसत लम्बित अवधि लगभग 18 से 23 माह है। इस अवधि के दौरान अंतिम आदेश दिया जाता है। जिन मामलों में कोई आदेश नहीं दिया गया उनकी औसत लम्बित अवधि 25 माह है।

प्रमुख रूप से देरी न केवल राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा देरी से जवाब देने से होती है बल्कि आयोग में अधिक समय लगना भी देरी का कारण है।

कुल प्राप्त शिकायतों में से केवल 18 प्रतिशत में दूसरी पार्टी से कोई जवाब मिल सका। इसका अर्थ है कि अधिकतर मामलों में शिकायतकर्ता को संबंधित अधिकारियों से प्राप्त रिपोर्ट पर टिप्पणी देने का कोई अवसर नहीं दिया जाता भले ही राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को रिपोर्ट मिल गई हो। अधिकारियों द्वारा बड़ी संख्या में अपर्याप्त स्वतंत्र रिपोर्ट मिलने को देखते हुए ये बड़ी चिंता का विषय है। ऐसे मामलों में अक्सर ऐसा होता है जिनमें पुलिस अपनी कथित क्रूरता की शिकायतों पर रिपोर्ट तैयार करती है। ऐसे मामलों में पक्षपातपूर्ण और अपर्याप्त रिपोर्ट दिए जाने की सम्भावना अधिक हो जाती है।
केवल 32.5 प्रतिशत मामलों में आयोग ने अंतिम आदेश जारी किया। तीन मामलों में शिकायतकर्ता को सूचित किए बगैर मामला बंद कर दिया गया। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की वेबसाइट से इस तथ्य का पता चला।

हिरासत में मृत्यु के बारे में दायर 11 शिकायतों में से किसी में भी आयोग ने अंतिम आदेश नहीं दिया हालांकि आयोग ने ऐसे मामलों में तेजी से छानबीन करने के दिशा-निर्देश और प्रतिबध्दता जारी की थी। इस अध्ययन के निर्देशों से आयोग की 2002-2003 की वार्षिक रिपोर्ट में दी गई उस जानकारी के विपरीत स्थिति सामने आती है जिसमें बताया गया था कि आयोग ने हिरासत में मृत्यु के सभी मामलों में आदेश जारी कर दिया है। अनुसूचित जातियों से मिली शिकायतों के मामले में सबसे अधिक बड़ी लम्बित अवधि और सबसे कम अंतिम आदेश जारी करने की स्थिति सामने आई है। इससे आयोग की वर्ष 2002-2003 की वार्षिक रिपोर्ट में दी गई उस जानकारी की पोल खुल जाती है कि आयोग दलितों को अधिकार दिलाने पर जोर देता है और उनसे प्राप्त शिकायतों पर ध्यानपूर्वक कार्रवाई की जाती है। इसके विपरीत उच्च वर्ग और सम्पन्न वर्ग के लोगों से मिली शिकायतों पर शायद अधिक ध्यान दिया गया।

आयोग ने संबंधित अधिकारियों से समय पर रिपोर्ट न मिलने या संतोषजनक रिपोर्ट न मिलने की स्थिति में जांच और पूछताछ के लिए मौके पर जाकर निरीक्षण करने के अपने अधिकार का शायद ही इस्तेमाल किया हो। अधिकतर मामलों में मौके पर जाकर जांच करने को अनावश्यक माना गया।

कुल शिकायतों में से केवल 20 प्रतिशत आयोग की वेबसाइट पर दिखाई गई हैं हालांकि पीपुल वॉच ऐसा करने का बार-बार अनुरोध कर रहा है।

ऑनलाइन उपलब्ध सूचना में काफी त्रुटियां और खामियां हैं। यह भी जानकारी उपलब्ध नहीं है कि कब सूचना मिली और कब उस पर कुछ कार्रवाई की गई। वेबसाइट पर उपलब्ध मामलों में से 64 प्रतिशत में जानकारी शिकायतकर्ता को आयोग से प्राप्त सूचना से मेल नहीं खाती। उपरोक्त निष्कर्ष एक ऐसे संगठन के लिए अत्यंत खेदजनक स्थिति है जिससे देश के अधिकतर नागरिकों खास तौर पर समाज के उपेक्षित और कमजोर वर्ग के लोगों ने न्याय के लिए उम्मीद लगा रखी है।

1 टिप्पणी:

Rajesh R. Singh ने कहा…

मानव अधिकार आयोग केवल नीद मे ही नही है वह तो अब मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को झूठे केस मे फंसा रहा है और कह रहा है की सभी मानव अधिकार संगठनो को बंद कराना है यह टिप्पणी महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग के लिए है

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