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मानस मंथन - जोश गैमन

फौजदारी न्याय पर राष्ट्रीय परामर्श के अंतर्गत नई दिल्ली में देश भर के कानूनविदों ने आरोपियों को कानून से प्राप्त संरक्षण सीमित करने की कोशिशों पर चर्चा की। इस पर जोश गैमन की रिपोर्ट

नयी दिल्ली में 2 और 3 जून 2007 को फौजदारी न्याय सुधार विषय पर आयोजित पहले राष्ट्रीय परामर्श में देश भर के कानून विशेषज्ञों और अधिकारियों ने भाग लिया। बहुप्रतीक्षित आयोजन इंडिया इंटरनैशनल सेंटर में हुआ जिसमें बारी-बारी से प्रतिष्ठित कानूनविदों ने अपने प्रभावपूर्ण विचार व्यक्त किए। दक्षिण अफ्रीका के संवैधानिक न्यायालय के न्यायमूर्ति मोहम्मद जकरिया याकूब भी इस आयोजन में उपस्थित थे और उन्होंने विभिन्न विषयों पर सारगर्भित विचार रखे। शनिवार 2 जून 2007 को न्यायालय के निर्णयों और सुधार समितियों पर आयोजित सत्र में परामर्श की शुरुआत हुई। वरिष्ठ अधिवक्ता धैर्यशील पाटील (महाराष्ट्र) ने उच्चतम न्यायालय के हाल ही के कुछ उन निर्णयों पर चर्चा की जिनसे हाल के वर्षों में आरोपियों के फौजदारी कानून संरक्षण पर कुठाराघात किया गया है। इसके बाद प्रोफेसर बीबी पांडे (नई दिल्ली) ने मलिमथ समिति की रिपोर्ट पर चर्चा करते हुए इसकी कडे से कडे शब्दों में आलोचना की।
दूसरे सत्र में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम 2005 और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम 2006 पर विशेष रूप से चर्चा की गई। एडवोकेट राजीविंदा सिंह बैंस (पंजाब), कृति राय (पश्चिम बंगाल), जिओ पॉल (केरल), पीके इब्राहिम (केरल), डॉ पी चन्द्रशेखरन (बंगलौर), वरिष्ठ एडवोकेट और पीयूसीएल के अध्यक्ष केजी कन्नाबीरन (आंध्रप्रदेश) सहित अन्य एडवोकेट ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
शनिवार के अंतिम सत्र में विभिन्न मानव अधिकार आयोगों और मानव अधिकार न्यायालयों के विषय पर चर्चा की गई। एडवोकेट नवकिरण सिंह (पंजाब), अब्दुल सलाम (केरल), गीता डी (तमिलनाडु), अनिल ऐकारा (केरल) तथा इरफान नूर (श्रीनगर, कश्मीर) ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग और राज्य मानव अधिकार आयोगों के साथ के अनुभवों पर चर्चा की और ये सभी एडवोकेट इस तथ्य पर सहमत थे कि आयोगों के कामकाज में खामियां हैं। परामर्श के प्रथम दिवस का समापन भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एएम अहमदी द्वारा दी गई प्रस्तुति और दक्षिण अफ्रीका के फौजदारी न्याय सुधार पर न्यायमूर्ति याकूब के भाषण के साथ हुआ।
रविवार 3 जून 2007 को राष्ट्रीय परामर्श के दूसरे दिन सशस्त्र बलों सहित सरकारी कर्मचारियों और एजेन्सियों को आपराधिक अपराधों से मिले संरक्षण विशय पर चर्चा शुरू हुई। केजी कन्नाबीरन (आंध्रप्रदेश) ने चर्चा की अध्यक्षता की। के बालगोपाल (आंध्रप्रदेश) ने पुलिस प्रताड़ना, आचरण और संरक्षण में आ रही कमी के बारे में सारगर्भित जानकारी दी और प्रकाश डाला।

3 जून के दूसरे और राष्ट्रीय परामर्श के पांचवें सत्र में पुलिस सुधारों पर चर्चा की गई। इसमें एडवोकेट वृंदा ग्रोवर (नई दिल्ली), प्रोफेसर एसएम अफजल कादरी (श्रीनगर, कश्मीर), एडवोकेट अशोक अग्रवाल (नई दिल्ली), महेन्द्र पटनायक (उड़ीसा), खाइदेम मणि (मणिपुर) और राष्ट्रीय मानव अधिकार के पूर्व महानिदेशक अन्वेषण शंकर सेन ने विचारों का आदान-प्रदान किया। प्रकाश सिंह के मामले, पुलिस सुधार पर सोली सोराबजी की रिपोर्ट, पुलिस दर्ुव्यवहार और प्रशासनिक नियंत्रण, सुधार की सिफारिशों तथा अन्य संबंधित विषयों पर चर्चा की गई।

छठे सत्र में कानूनी सहायता सेवा प्राधिकरणों पर चर्चा की गई। राष्ट्रीय और राज्य स्तर के कानूनी सहायता सेवा प्राधिकरणों के कामकाज की समीक्षा की गईं और सुधार के लिए सिफारिशें प्रस्तुत की गई। इस सत्र में एडवोकेट गीता रामशेषन (तमिलनाडु), एआर हनजूरा (श्रीनगर, कश्मीर) और नारायण सामल (उड़ीसा) ने इस सत्र में विचारों का आदान-प्रदान किया।

सातवें सत्र में लोक अदालतों और त्वरित न्याय के न्यायालयों पर चर्चा की गई। इस सत्र में भी इन अदालतों के कामकाज की समीक्षा की गई और सुधार के लिए सिफारिशें प्रस्तुत की गई। एडवोकेट मीना गोडा (मुम्बई), पीके अवस्थी (उत्तरप्रदेश), डीबी बीनू (केरल), डॉ अर्चना अग्रवाल (दिल्ली) और विजय हिरेमठ विचारों का आदान-प्रदान करने वालों में सम्मिलित थे।

आठवें और अंतिम सत्र में साम्प्रदायिक हिंसा रोक, नियंत्रण और पीड़ित पुनर्वास विधेयक-2005 पर चर्चा की गई। विधेयक का विश्लेषण और मूल्यांकन किया गया तथा कई परिवर्तनों की सिफारिश की गई। हर्ष मंदर (नई दिल्ली) और एडवोकेट शीला रामनाथन (कर्नाटक) ने भी चर्चा में भाग लिया।

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